आलेखः
मात्र भावुकता से नहीं होगी कोविड-19 पर जीत
भूख,मानसिक स्वास्थ और जर्जर आर्थिक गतिविधि आगामी चुनौती-भूपेन्द्र गुप्ता
जैसे जैसे कोविड-19के संक्रमण के प्रकरण तेजी से सामने आ रहे हैं वैसे वैसे ये सवाल भी महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं कि एक राष्ट्र के रूप में हम कहां गलती कर बैठे हैं और बिना इस विवाद में पड़े कि कौन इस चूक के लिये जिम्मेदार है,हमें एक सजग राष्ट्र के रूप में क्या करना चाहिये था।पहिया जहां तक घूम चुका है अब उसे वापिस नहीं घुमाया जा सकता किंतु एक सिस्टम के रूप में हम अपनी सतर्कता से आने वाले दुष्प्रभावों को जरूर कम कर सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन जब 31 दिसंबर 2019को चीन में पहला प्रकरण सामने आया था तभी से चिंता व्यक्त कर रहा था कि यह वायरस इनफ्लूएंजा जैसे और न्यूमोनिया के लक्षणों जैसा वायरस है जिसके फैलने की रफ्तार बहुत तेज है।उन्होंने दुनिया को आगाह करना शुरू किया हालांकि चीन के आग्रह पर घोषणा करने में उसने देरी की। प्रारंभिक परिणामों की गंभीरता देखकर विश्व स्वास्थ संगठन ने 30जनवरी 2020को इसे पव्लिक हेल्थ इमरजैंसी घोषित कर दिया ,पूरे विश्व को सतर्क करने का यही एक उपाय था। इस तत्परता के बावजूद इसके विस्तार को रोक पाने में असफलता के चलते 11फरवरी को इसका नामकरण 'कोविड-19'किया गया।
भारत जैसे देशों को जहां 133 करोड़ आबादी अलग अलग तरीके से और विपन्नता में वास करती है ,यह स्पष्ट चेतावनी थी।लेकिन क्या हम एक राष्ट्र के रूप में कोविड-19 की इस विकरालता को समझने में असफल हुये?
30 जनवरी की अंतर्राष्ट्रीय चेतावनी के आंगन में ही खेलते हुये 24 फरवरी को अहमदाबाद में 'नमस्ते-ट्रंप'का आयोजन हुआ,जिनमें लाखों लोगों को इकट्ठा किया गया एक लाख से अधिक लोगों की भीड़ से गदगद ट्रंप इस बात से झूमते रहे कि आस्कर अवार्ड को देखने वाले 23 मिलियन यानि 2.3करोड़ दर्शकों के मुकाबले लगभग पांच करोड़ दर्शकों ने उन्हें भारत के टीवी चैनलों पर निहारा,(BARC बार्क का आंकड़ा 46मिलियन व्यूज का है।) इस उत्सवी उन्माद में यह खबर दब गई कि संभवतः उनकी पुत्री कोविड संक्रमण संदेही थीं ।
जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व स्वास्थ संगठन चिंतित था वैसे ही भारत की वैग्यानिक संस्था आई सी एम आर भी चिंतित थी और उसकी अपनी आशंकायें थीं।इसकी गंभीरता को देखकर आइ सी एम आर के वैग्यानिक रमन आर गंगाखेड़कर ने प्रेस कान्फ्रेंस कर चेतावनी दी कि सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन किया जावे।उस समय तक भारत में संक्रमण के केवल 124 प्रकरण पंजीकृत हुये थे।हालांकि स्वयं गंगाखेड़कर ने इन आंकड़ों पर सार्वजनिक संदेह जाहिर किया था।वे सही थे क्योंकि यह आंकड़ा अब 5184 पर पहुंच गया है।
गंगाखेड़कर की चेतावनी के बाद भी विदेश से आने वाले लाखों यात्रियों की थर्मल स्केनिंग में चूक हुई और ये लाखों लोग देश में कहां गये किससे मिले वे संक्रमित थे या नहीं थे ।किसी को कुछ नहीं पता ,जैसे राम के भरोसे सब छूटा हो और हजारों संक्रामक केरियर देश में घूमते रहे।उसी दौरान हर साल की तरह तबलीगी जमाती भी आये,जिनकी जानकारी उसी तारीख को मिल गई थी जब गंगाखेड़कर ने चेतावनी दी थी किंतु अग्यात लापरवाही प्रशासन पर छाई रही।हजारों लोग वैष्णव माता के और अन्य धार्मिक स्थलों पर तीर्थाटन के लिये जाने दिये गये।जिस तरह से मरकज से निकले जमातियों ने देश को खतरे में डाला,उसी तरह मध्यप्रदेश के मुरैना में मां की अंत्येष्टि में लौटे प्रवासी भारतीय ने किया उसने मृत्यू भोज में 1500 लोगों को आमंत्रित किया और आज की भयावहता का अंदाजा लगाईये कि इस घटना से मुरैना में एक दर्जन कोरोना पाजिटिव मिले हैं लगभग 58 हजार लोगों को संदेहास्पद माना गया और लगभग 29 हजार लोगों को सेल्फ क्वरेन्टीन किया गया ,इससे कोरोना की फैलने की क्षमता का अहसास किया जा सकता है।
इतनी खतरनाक परिस्थितियों में गंगाखेड़कर की चेतावनी के बाद भी विधायकों को एक साथ हफ्तों रखा गया,केन्द्र सरकार की सख्त एडवायजरी के बावजूद विधायक इकट्ठे हुये,सोशल डिस्टेंसिंग की अवहेलना कर विधायकों की परेड हुई,हाथ में हाथ डालकर विधायक दल की बैठकें हुईं और सफलता पूर्वक सरकार गिराने का जश्न हुआ।।इसके बाद नई सरकार की अति सक्रियता दिखाने के लिये अधिकारियों की ताबड़तोड़ बैठकें हुईं,तब तक एक संक्रमित पत्रकार की बेटी का प्रकरण भी सामने आ चुका था।
20 मार्च को सरकार गिरा दी गई और 20 मार्च को पहला प्रकरण जबलपुर में पाजिटिव पाया गया यह संक्रमित परिवार उसी 16 मार्च को विदेश से जबलपुर आया था जब मध्य प्रदेश में सत्ता की भूख में कुछ बड़े नेता इसे "डरोना-डरोना" कह रहे थे।उन पर जबलपुर में 21 मार्च को तथ्य छुपाने की एफ आई आर भी दर्ज कर ली गई थी।फिर भी यही चूक उत्तरदायी अफसरों ने भोपाल में क्यों दुहराई ?
कुल कहानी यह कि 16 मार्च को मध्यप्रदेश में एक भी रिपोर्टेड केस नहीं था और आज महज 20दिन बाद कुल 342 प्रकरण पाजिटिव मिल चुके हैं जिनमें से अकेले इंदौर में 17 मौतें हो चुकी हैं । और भी दुखद यह है कि भोपाल के लगभग 90 संक्रमित मरीजों में 30 तो स्वाथ्य विभाग से ही हैं।एक डाक्टर की मृत्यू हो चुकी है। हमारी चूक या लापरवाही की यह कहानी अब पीछे तो नहीं लौट सकती किंतु जो परिस्थितियां सामने आने वालीं है उनसे निपटने की तैयारी की जा सकती है।
भारत एक भावुक देश है हम अपनी राष्ट्रभक्ति को प्रकट करने के लिये सदैव तत्पर होते हैं , होना भी चाहिये किंतु व्यवहारिक चुनौतियों की अवहेलना करके नहीं।
गहन अध्ययन और प्रदेश व्यापी समाचारों से मुझे लगता है कि अगर हम इन लापरवाहियों के बावजूद अगर कोविड-19 से निकल आये तो हमें तत्काल तीन चुनौतियों से रूबरू होना पड़ेगा ।एक है हंगर यानि भूख और दूसरी है मेंटल हेल्थ यानि मानसिक स्वास्थ और तीसरी जर्जर आर्थिक गतिविधि।संसाधनों की कमी और अभाव ,संसाधनों का युक्ति संगत वितरण और मानसिक व्यवस्थापन तथा सामुदायिक समर्थन से आर्थिक गतिविधि को बढ़ाना हमारे प्रशासन व्यवस्था की नई चुनौती होंगे।मास स्तर पर लोग अवसाद का शिकार होंगे,उनकी कौउन्सलिंग एवं ऊपर उठाने की योजनायें बनाने की तैयारी नव प्रशासकों को आज से करनी पड़ेंगीं।छोटे व्यापारियों और एम एस एम ई के लिये अतिरिक्त पूंजी की व्यवस्था करनी पड़ेगी।इस सेक्टर के प्रदेश के उत्पादकों को शासकीय खपत से जोड़कर जीवन देना होगा।लाखों माईग्रेटेड मजदूरों का पुनर्वास करना होगा और उनकी उत्पादक संलग्नता के रास्ते तैयार करना पड़ेंगे ,सेवा क्षेत्र को कैसे सामुदायिक समर्थन मिले इसकी योजना बनानी पडेंगी तभी भारत जीतेगा एक राष्ट्र के रूप में भी और प्रशासनिक एपरेटस के रूप में भी। क्या हम ऐसा कर सकेंगे..?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, यह आलेख पर विचार लेखक के स्वतंत्र इन विचारों से माय स्वीट एवं गूगल का कोई लेना देना नहीं)